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  पुनर्नवा
पुनर्नवा
 
 
 
 
 
 
पुनर्नवा एक ऐसी वनस्पति है, जो हर वर्ष नवीन हो जाती है, इसलिए इसे पुनर्नवा नाम दिया गया है।

सेवन करने वाले के शरीर को यह रसायन और नया कर देता है, इसलिए भी इसका नाम पुनर्नवा सार्थक सिद्ध होता है।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- पुनर्नवा। हिन्दी- सफेद पुनर्नवा, विषखपरा, गदपूरना। मराठी- घेंटूली। गुजराती- साटोडी। बंगला-श्वेत पुनर्नवा, गदापुण्या। तेलुगू- गाल्जेरू। कन्नड़-मुच्चुकोनि। तमिल- मुकरत्तेकिरे, शरून्नै। फारसी- दब्ब अस्पत। इंग्लिश- स्प्रेडिंग हागवीड। लैटिन- ट्रायेंथिमा पोर्टयूलेकस्ट्रम।

गुण : श्वेत पुनर्नवा चरपरी, कसैली, अत्यन्त आग्निप्रदीपक और पाण्डु रोग, सूजन, वायु, विष, कफ और उदर रोग नाशक है।

रासायनिक संघटन : इसमें पुनर्नवीन नामक एक किंचित तिक्त क्षाराभ (0.04 प्रतिशत) और पोटेशियम नाइट्रेट (0.52 प्रतिशत) पाए जाते हैं। भस्म में सल्फेट, क्लोराइड, नाइट्रेट और क्लोरेट पाए जाते हैं।

परिचय : यह भारत के सभी भागों में पैदा होती है। इसकी जड़ और पंचांग का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। सफेद और लाल पुनर्नवा की पहचान यह है कि सफेद पुनर्नवा के पत्ते चिकने, दलदार और रस भरे हुए होते हैं और लाल पुनर्नवा के पत्ते सफेद पुनर्नवा के पत्तों से छोटे और पतले होते हैं। यह जड़ी-बूटियां बेचने वाली दुकान पर हमेशा उपलब्ध रहती है।

उपयोग : इस वनस्पति का उपयोग शोथ, पेशाब की रुकावट, त्रिदोष प्रकोप और नेत्र रोगों को दूर करने के लिए विशेष रूप से किया जाता है। आयुर्वेदिक योग पुनर्नवासव, पुनर्नवाष्टक, पुनर्नवा मण्डूर आदि में इसका उपयोग प्रमुख घटक द्रव्य के रूप में किया जाता है।

* नेत्र रोग की यह उत्तम औषधि है। सफेद पुनर्नवा की जड़ को दूध में घिसकर, यह लेप आँखों में लगाएँ। आँख में फूला हो तो इसे घी के साथ घिसकर लगाएँ। तिमिर रोग के लिए तेल में और बार-बार जल्दी से जल्दी आँसू गिरते हो तो शहद में घिसकर आँखों में आँजना चाहिए। इसकी जड़ को गाय के गीले गोबर के रस में घिस कर आँखों में लगाने से मोतियाबिन्द ठीक होता है।

* पुनर्नवा के साथ काली कुटकी, चिरायता और सोंठ समान मात्रा में लेकर जौकुट करके काढ़ा बनाकर 2-2 चम्मच सुबह-शाम पीने से सूजन, एनीमिया में बहुत लाभ होता है।
कामला : इसे पीलिया भी कहते हैं। इस रोग में पित्त को विरेचन द्वारा बाहर निकालने के लिए पुनर्नवा की जड़ का महीन पिसा-छना चूर्ण आधा-आधा चम्मच, ऊपर बताए गए 2-2 चम्मच काढ़े और आधा कप पानी के साथ पीने से 2-4 दिन में ही कामला रोग का शमन हो जाता है। इस रोग के लिए इस नुस्खे का प्रयोग निर्भय होकर निरापद रूप से किया जा सकता है।

श्वास (दमा) रोग : जब दमा रोग का दौरा पड़ता है, तब रोगी को पीड़ा और बेचैनी होती है। खासकर इस रोग का दौरा रात में पड़ता है और रोगी को रातभर बैठे रहना पड़ता है। इसके दौरे के वेग को शांत करने के लिए भी इस काढ़े के साथ पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण उपरोक्त विधि से सेवन करने पर धीरे-धीरे रोगी को आराम मिल जाता है।

पथरी : गुर्दों में पथरी हो जाए तो संगेयहूद भस्म 2-2 रत्ती और आधा-आधा चम्मच पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण, शहद में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पथरी निकल जाती है।

मासिक धर्म : स्त्रियों के गर्भाशय में शोथ होने पर मासिक ऋतु स्राव में अनियमितता, कमी और अवरोध की स्थिति पैदा हो जाती है, ऋतु स्राव कष्ट के साथ होता है। इस स्थिति में पुनर्नवा और कपास की जड़ का काढ़ा 2-2 चम्मच सुबह-शाम आधा कप पानी में डालकर पीने से लाभ होता है।

पुनर्नवा के आयुर्वेदिक यो

पुनर्नवाष्टक क्वाथ : पनुर्नवा की जड़, नीम की अंतरछाल, पटोलपत्र, सोंठ, कुटकी, गिलोय, दारुहल्दी और हरड़ ये आठों द्रव्य समान मात्रा में लेकर मोटा-मोटा कूट लें। 2 चम्मच चूर्ण लेकर 2 कप पानी में डालें और काढ़ा करें। जब पानी आधा कप बचे तब उतारकर छान लें व ठंडा करके पी लें। इसी प्रकार शाम को भी काढ़ा बनाकर पिएं। यह योग उत्तम मूत्रल और शोथनाशक औषधि है। इसके सेवन से सर्वांग शोथ, उदर विकार और श्वास-कास में भी लाभ होता है तथा दस्त साफ होता है।

पुनर्नवासव : पुनर्नवा, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, दारुहल्दी, गोखरू, छोटी कटेली, बड़ी कटेली, अडूसे के पत्ते, एरण्ड की जड़, कुटकी, गजपीपल, नीम की अंतरछाल, गिलोय, सूखी मूली, धमासा, पटोलपत्र ये 20 द्रव्य 10-10 ग्राम, धाय के फूल 150 ग्राम, मुनक्का 200 ग्राम, मिश्री एक किलो और शहद आधा किलो लें। सब द्रव्यों को कूट-पीसकर शहद सहित 5 लीटर पानी में डालकर काँच के बर्तन में भरकर एक मास तक रखा रहने दें। एक मास बाद मोटे कपड़े से छानकर बोतलों में भर लें। यह पुनर्नवासव है। इसे 2-2 बड़े चम्मच, आधा कप पानी में डालकर सुबह-शाम दोनों वक्त भोजन के बाद पीना चाहिए।

यह योग शोथ, उदर रोग, प्लीहा वृद्धि, यकृत (लीवर) वृद्धि, अम्ल पित्त, गुल्म, ज्वर आदि जैसे कष्टसाध्य रोगों को ठीक करता है। यह उत्तम मूत्रल (पेशाब लाने वाला) और हृदय के लिए हितकारी है। शरीर में किसी भी कारण से आए शोथ को यह योग दूर कर देता है। यदि शोथ बहुत तीव्र हो तो इसके साथ ही सारिवासव 2-2 चम्मच मिलाकर लेना चाहिए।

पुनर्नवा अर्क : पुनर्नवा पंचांग को चौगुने जल में डालकर, अर्क निकालने की विधि से इसका अर्क निकाल लें। इसे दिन में 2-3 बार 2-2 छोटे चम्मच, आधा कप पानी में डालकर पीने से सब प्रकार के शोथ मिट जाते हैं, पेशाब की रुकावट दूर होती है और खुलकर पेशाब होता है। 2-2 बूँद आँखों में डालने से आँखों की शोथ (सूजन), जलन व पीड़ा दूर होती है।

पुनर्नवा के सभी आयुर्वेदिक योग आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता की दुकान पर बने बनाए मिलते हैं।

 
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