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यौन समस्याओं से संबंधित प्रश्न-उत्तर |
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प्रश्न : वीर्य क्या है, कैसे बनता है और शरीर में कहाँ रहता है, इसमें क्या-क्या मिला होता है ?
उत्तर : शुक्र को वीर्य भी कहते हैं। वीर्य का अर्थ होता है ऊर्जा और शुक्र ऊर्जावान, मलरहित, सर्वशुद्ध होता है, इसीलिए इसे वीर्य नाम दिया गया है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है, इसलिए भी इस धातु को वीर्य कहा गया है। शुद्ध और दोषरहित वीर्य से अच्छी संतान पैदा होती है। शुक्रल द्रव का लगभग 30 प्रतिशत भाग पौरुष ग्रंथि से निकलने वाले स्वच्छ स्राव से और 70 प्रतिशत भाग शुक्राशय ग्रंथि से निकलने वाला होता है, जो मिलकर शुक्रलद्रव बनता है। यही द्रव स्खलन के समय शिश्न से बाहर निकलता है।
प्रश्न : वीर्य दूषित कैसे होता है ?
उत्तर : अधिक मैथुन करने, सदैव कामुक विचार करते रहने, शक्ति से अधिक श्रम, व्यायाम करने, पोषण आहार का सेवन न करने, मादक पदार्थों का सेवन करने, अप्राकृतिक तरीके से वीर्यपात करने, अश्लील साहित्य पढ़ने, चित्र देखने, रोगग्रस्त व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने, तेज मिर्च-मसालेदार व अधिक खटाई के पदार्थों का सेवन करने, चिंता, शोक, भय, मानसिक तनाव व गुप्त संक्रामक रोग हो जाने से वीर्य दूषित हो जाता है।
प्रश्न : वीर्य में शुक्राणुओं की कमी को कैसे दूर किया जा सकता है ?
उत्तर : वीर्य में शुक्राणुओं की कमी होने पर बच्चे पैदा करने में परेशानी होती है। इसके लिए शतावरी, गोखरू, बड़ा बीजबंद, बंशलोचन, कबाब चीनी, कौंच के छिलका रहित बीज, सेमल की छाल, सफेद मुसली, काली मुसली, सालम मिश्री, कमल गट्टा, विदारीकंद, असगन्ध सब 50-50 ग्राम और शकर 300 ग्राम, सभी द्रव्यों को अलग-अलग कूट- पीसकर कपड़छान कर लें। शकर को भी पीसकर महीन कर लें और सभी को मिला लें व तीन बार छान लें, ताकि एक जान हो जाएँ। सुबह-शाम एक-एक चम्मच चूर्ण मीठे दूध के साथ 60 दिन तक सेवन करें और इसके बाद वीर्य की जाँच करवाकर देख लें कि शुक्राणुओं में क्या वृद्धि हुई है। पर्याप्त परिणाम न मिलने पर प्रयोग जारी रखें। यह नुस्खा शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, नपुंसकता आदि बीमारियों में भी लाभ करता है।
प्रश्न : हस्तमैथुन करना गलत और हानिकारक काम बताया जाता है पर डॉक्टर और पश्चिमी यौन विज्ञानी इसे स्वाभाविक और हानि रहित काम मानते हैं। ऐसा क्यों, यह विरोधाभास किसलिए ?
उत्तर : यह विरोधाभास नहीं वास्तव में परस्पर विरुद्ध मान्यताएँ हैं। इसका कारण है हमारे देश और पश्चिमी देशों के रहन-सहन, विचारधारा और वातावरण में अंतर होना। जब से हमारे देशवासी पश्चिम के रंग में रंगने लगे हैं, तब से यह पारस्परित विरोध खत्म होता जा रहा है, क्योंकि इस विषय में हमारे यहां के अनेक लोग भी पश्चिमी ढंग से विचार करने लगे हैं। |
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